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राजीव गाँधी की छवि जानबूझकर ख़राब की गयी, वैसा नेक प्रधानमंत्री होना मुश्किल है- मणिशंकर अय्यर

 24 Apr 2024

भारत के छठे प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी का कार्यकाल कई सवालों के घेरों में घिरा हुआ है। ऐसे लोग बहुत कम हैं जिन्होंने राजीव गांधी को जानने की कोशिश की है, लेकिन वे भी राजीव गाँधी के बारे में पूरी सच्चाई नहीं जानते हैं। कई लोग ऐसे है जिन्होंने राजीव गांधी को सिर्फ़ उतना ही जाना है जितना वे किसी खबरों को लेकर चर्चा में रहे होंगे। नौकरशाही से इस्तीफ़ा देकर कभी राजीव गाँधी के राजनीतिक सहयोगी बने मणिशंकर अय्यर ने अपनी नयी किताब में राजीव गाँधी के बारे में तमाम नयी जानकारियाँ साझा की हैं।इस 300 पेजों की इस किताब के माध्यम से जो सामने आया है वह राजीव गांधी के प्रति बनी हुई धारणाओं से बिलकुल उलट है। वरिष्ठ पत्रकार और सत्य हिंदी के संस्थापक संपादक आशुतोष ने  मणिशंकर अय्यर से उनकी इस किताब ‘द राजीव आई निव'  को लेकर एक वीडियो इंटरव्यू किया है। इस इंटरव्यू के कुछ अंश  हम मॉलिटिक्स के पाठकों के लिए लाये हैं। पढ़िए-



आपको ऐसा क्यों लगता है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बारे में जो जानकारियां सार्वजनिक हैं, उससे उनके बारे में गलत समझ पैदा हुई है?

मुझे लगता है राजीव गांधी के बारे में गलत जानकारियां और समझ पैदा हुई नहीं बल्कि की गईं। राजीव गांधी के समय से ही मीडिया के तमाम बड़े चेहरों ने उनके बारें में गलत जानकारियां छापीं। राजीव गांधी को भ्रष्ट और बेईमान दिखाने की कोशिश की गई। शायद ही भारत में अब तक राजीव गांधी जैसा ईमानदार और नेक प्रधानमंत्री बना हो। मैं ऐसा इसलिए नहीं बोल रहा हूँ क्योंकि मैं राजीव गांधी के नजदीक था,  बल्कि सब तथ्यों के आधार पर हैं। ' राजीव आई निव' (knew)' उन्हीं तथ्यों के आधार पर लिखी गई है।


क्या राजीव गांधी अपनी नेक नियति की वज़ह से एक अच्छे प्रधानमंत्री साबित नहीं हुए ?


आज के दौर में यदि आप नेक इंसान नहीं हो तो आप एक अच्छे प्रधानमंत्री बन सकते हो। इतना ही नहीं आप तीन बार भी प्रधानमंत्री बन सकते हो। राजीव गांधी के बहुत से काम इसलिए सफ़ल नहीं हो पाये, क्योंकि लोग राजीव गांधी को समझ ही नहीं पाये। मैंने राजीव गांधी पर किताब ही इसी उद्देश्य से लिखी है कि लोग राजीव गांधी को अच्छे से समझ पायें और उन्हें न्याय मिल पाये। जिस बोफोर्स और शाहबानो के केस में राजीव गांधी की छवि को गंदा किया गया था उसमें ख़ुद सुप्रीम कोर्ट ने बाद में अपने फैसले से साबित किया है कि राजीव गांधी का फ़ैसला ठीक था। 

राजीव गांधी पर आरोप था कि उन्होंने हिंदू वोट पाने के लिए बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया था। इसके अलावा राजीव गांधी ने शाहबानो के केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पलटा था। कोर्ट ने शाहबानो के हक़ में अपना फैसला सुनाया था। कोर्ट ने शाहबानो को उनके तलाक़शुदा पति से गुजारा भत्ता पाने पर अपनी सहमति जताई थी।  सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतिम फैसले में माना कि राजीव गांधी ने संसद में कोर्ट के फैसले को पलटा नहीं था बल्कि फैसले को और मजबूती दी थी। दरअसल, राजीव गांधी ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के नाम से एक कानून बनाया था, जिसका वादा कांग्रेस ने 1946 में ही कर दिया था। इसमें मुसलमानों की पवित्र किताब ' कुरान' के माध्यम से नियमों को तैयार करके उसे कानूनी दर्जा दिया गया जिससे महिलाओं को अधिकार और मुस्लिम लोगों को न्याय मिल सके।

 कांग्रेस के पूर्व नेता अरुण नेहरू का राजीव गांधी की छवि ख़राब करने में बहुत बड़ा हाथ था। एक वक्त पर इंदिरा गांधी ने ही अरुण नेहरू को राजनीतिक रूप से बड़ा नेता बनाया था। वो अरुण नेहरू ही थे जिन्होंने इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन राजीव गांधी को नहीं पता था कि अरुण नेहरू कितने दुष्ट व्यक्ति हैं। राजीव गांधी ने जब बाबरी मस्जिद का ताले खुलने पर जांच बैठाई थी तब उन्हें पता चला था कि बाबरी मस्जिद की घटना को लेकर जो मुख्य साजिशकर्ता थे उनमें अरुण नेहरू भी शामिल थे। अरुण ने ही सेशन कोर्ट के जज से अनुमति का नोटिस लेकर मस्जिद का ताला खुलवाया था।  बोफोर्स मामले में भी जो गलत जानकारियां सार्वजनिक की गई उसमे भी अरुण नेहरू का ही हाथ था।

जब वी पी सिंह प्रधानमंत्री बने और अरुण गांधी उनके मंत्री तब वी पी सिंह ने बोफोर्स के आरोपों की जांच में देरी इसलिए की क्योंकि वी पी सिंह को पता था कि अरुण नेहरू पर आरोप सिद्ध हो सकते हैं।  राजीव गांधी ही थे जिन्होंने वी पी सिंह को एक बड़ा नेता बनाया था। लेकिन जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने तब राजीव गांधी की सुरक्षा से एसपीजी  सुरक्षा को  वापस ले लिया गया। जिसके बाद भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी राजीव गांधी की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं किया था। 

 'दलाल’ नाम के व्यक्ति ने मुझे बताया था कि पीएम रहते चंद्रशेखर ने किसी को जगजीत सिंह चौहान से मिलने के लिए लंदन भेजा था जहां उसने पाया कि खालिस्तानी और लिट्टे उग्रवादी राजीव गाँधी की हत्या की साजिश रच रहे हैं। ये सभी बातें दलाल ने लौटकर तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को बताई थी लेकिन इस पर उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। 

पिछले 23 सालों में सुप्रीम कोर्ट ने जितने भी फैसले महिलाओं के अधिकारों को लेकर किए हैं वे सभी मुस्लिम पर्सनल लॉ के आधार पर किए गए हैं।आज प्रमुख सभी राजनीतिक दल जानते हैं कि पर्सनल लॉ का लाया जाना कितना जरूरी था। आरिफ़ मोहम्मद खान जो आज केरल के राज्यपाल है और पूर्व कांग्रेस नेता भी थे। आरिफ़ अपने आपको एक लीडर के तौर पर देखते थे। क्योंकि वो कांग्रेस में अपने आपको एक लीडर के तौर पर नहीं देख पा रहे थे इसलिए आरिफ़ पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और वीपी सिंह से जाकर मिल गए और बन गए एक प्रमुख षड्यंत्रकारी नेता। एक राज्यपाल के रूप में आरिफ़ को सुप्रीम कोर्ट ने भी बोला हुआ है कि वे अपने निर्णयों और कार्यों को संविधान के दायरे में रह कर करें।



क्या ये संभव है कि राजीव की जानकारी के बिना अरुण नेहरू ने बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया या फिर राजीव गांधी को बचाने के लिए ये सब बाते कही गईं थीं?

अरुण नेहरू उत्तर प्रदेश से संसद  सदस्य रहे थे। 1985 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की मृत्यु होती है, जिसके बाद अरुण नेहरू वीर बहादुर सिंह को अगला मुख्यमंत्री बनवाते हैं, जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में ज़्यादा प्रसिद्ध नहीं थे।अरुण नेहरू ने वीर बहादुर को कहा कि अगर वे बाबरी मस्ज़िद के ताले खुलवा देते हैं तो हिंदू वोट उनके लिए पक्के हो जायेंगे। वे अयोध्या पहुंचकर हिंदू संगठनों, जस्टिस देवकीनन्दन और जस्टिस काटजू से मिलते हैं। जस्टिस काटजू और देवकीनंदन कहते हैं कि कोर्ट ने बाबरी मस्जिद पर ताला लगाने जैसा कोई भी आदेश नहीं दिया है।

वीर बहादुर ने जब जांच करवाई तो पता चला कि आदेश कोर्ट ने नहीं बल्कि प्रशासन ने दिया था ताकि राज्य में शांति बनी रहे। जिसके बाद बहादुर ने फैजाबाद के एस.पी (पुलिस अधीक्षक) और जिला अधिकारी को कोर्ट से यह बात बताने के लिए कहा।  जिस जिला कोर्ट में यह मामला कई वर्षों से ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ था उस पर कोर्ट ने एक दिन में फ़ैसला लेते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद के ताले को खोलकर भी शांति व्यवस्था बनाये रख सकते हैं। आदेश के आधे घंटे के अंदर ही ताले को तोड़ दिया गया। कोर्ट के आदेशों का पालन करने में काफ़ी समय लग जाता है  पर उस आदेश को आधे घंटे में ही जारी कर दिया गया।

जैसे ही अरुण नेहरू का पूरा षड्यंत्र राजीव गांधी को पता चला, अरुण नेहरू को कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया  गया। जिसके बाद अरुण गांधी, वीपी सिंह से जाकर मिल गए, जिन्होंने बाद में नेशनल फ्रंट बनाया जिनकी सरकार 1989 में जाकर बनी।

बाबरी मस्जिद के पूरे मामले में राजीव गांधी का निर्णय लेना बिलकुल भी आसान नहीं था। अगर राजीव गांधी सेशन कोर्ट के फैसले को रोकते तो यह कोर्ट की अवमानना मानी जाती, और क्योंकि बाबरी मस्जिद को लेकर पहले से ही तमाम मुस्लिम संगठनों और उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अर्जी दी हुई थी तो ऐसे में केंद्र का बीच में दख़ल देना ठीक नहीं था।


वीपी सिंह को वित्त मंत्री बनाना क्या राजीव गांधी की गलती रही?

राजीव गांधी ने वीपी सिंह को ईमानदार और एक अच्छा व्यक्ति होने के कारण सरकार में वित्त मंत्री बनाया था। 1986 तक सब ठीक था, लेकिन इसके बाद राजीव गांधी और वीपी सिंह के बीच नीतियों और निर्णयों को लेकर कई मतभेद देखने को मिलने लगे। वीपी सिंह पार्टी में अपना अलग स्थान बनाने पर उतारू थे। दरअसल, राजीव गांधी ने वीपी सिंह को रक्षा मंत्री बनाने के बजाय एन.डी तिवारी को रक्षा मंत्री बनाया। वीपी सिंह को लगा कि उनके साथ नाइंसाफी हुई है। जिसके बाद वीपी सिंह ने रक्षा क्षेत्र में कोई एक बड़ी चूक को पकड़ने के लिए फाइलों की जांच करनी शुरू कर दी।  ऐसा करने के पीछे उनका उद्देश्य राजीव गांधी की सरकार को गिराना था। वीपी सिंह को एक सबमरीन की डील को लेकर जर्मनी के अधिकारी का एक संदेश फाइलों की जांच के दौरान मिला। जिसमें कहा गया था कि उनसे सबमरीन के समझौते के बदले में रिश्वत मांगी गई थी। वीपी सिंह को यह बात कायदे से राजीव गांधी को बतानी चाहिए थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। वीपी सिंह ने रिश्वत वाली ख़बर को सार्वजनिक कर दिया। वीपी सिंह अब कांग्रेस को छोड़कर नेशनल फ्रंट का हिस्सा बन गए थे।


क्या राजीव गांधी को लोगों की समझ नहीं थी?


राजीव गांधी को उनके करीबियों से ज्यादा धोखा मिला,  चाहे वो अरुण नेहरू रहे हों, आरिफ़ मोहम्मद खान या विश्वनाथ प्रताप सिंह।  राजनीति में ऐसा होता है। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी हटाने  के लिए उनके करीबियों ने भी कोशिश की थी, लेकिन सभ्य तरीके से। इंदिरा गांधी के खिलाफ कांग्रेस की सिंडिकेट ने मोर्चा खोला हुआ था।  आज प्रधानमंत्री मोदी भी उन्हीं लोगों को अपनी पार्टी में दरकिनार कर रहे हैं जिन्होंने मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। चाहे वो नितिन गडकरी ही क्यों न हो। राजनीति में इस तरह की चीज़ें होना आम बात बन गई है।